कहानी-'एक बूढ़ी औरत'
एक बार मैं कहीं जा रहा था, अचानक रास्ते में सड़क किनारे एक बूढ़ी औरत मिली बोली कौन है बेटा? मैंने कहा मैं तो एक अजनबी हूं ताई। फिर वो बोली बेटा मेरा अंतिम समय आ गया है। लगता है भगवान का बुलावा आ गया है। अब जाना पड़ेगा। फिर बोली मुझे सड़क के उस पार जाना है। मेरे जाने के बाद यहां कोई और आने वाली है। बुड्ढीया की दीन-हीन दशा देख कर मेरी आंखों में आंसू आ गए। और बुड्ढीया को सड़क पार कराने लगा उसके कांपते हाथों को थाम कर लगा कितनी बेबस होती है ये जिंदगी भी। ये भाव मेरे मन को झंझकोर रहे थे फिर सोचा कि क्यों आता है ये बुड्ढापा? इस समय पर सभी अपनी निगाहें फेर लेते हैं। न जाने क्यों लोगों की भावनाएं बदल जाती है। ये विचार मेरे मन को बेचैन कर रहे थे, तभी दबी आवाज में बुड्ढीया बोली "तुम तो अभी जवान, समझदार हो बेटा उन्हें जा कर कह देना आपस में मिल-जुलकर रहे" तभी मैं अपने विचारों भंवर से बाहर निकला और अपना सिर हिला कर कहा, तुम किस की बात करती हो। तब बुड्ढीया ने कहा कभी मैं भी तेरी तरह जवान थी, मेरे भी कुछ अरमान थे, सपने थे, आशाएं थीं। लेकिन... खैर मेरी तो छोड़िए मेरे बेटे-बेटीयों का ख़्याल रखना। मेरी चार बेटियां और आठ बेटे हैं। सभी का स्वभाव अलग-अलग है।तब मैं सोचने लगा, बुड्ढीया के इतने बेटे-बेटीयां फिर भी किसी को अपनी "मां" की परवाह नहीं है।तब बुड्ढीया बोली बेटा मेरी सोतन रूपी "साल" आने वाली है।सब उसी के इंतजार में बैठे हुए हैं और मुझे भुल गए हैं। ये बातें मेरे मन में नदी के तेज़ बहाव कि तरह बहती जा रही थी।तब बुड्ढीया बोली बेटा मेरी बड़ी बेटी जनवरी का स्वभाव जरा तेज है तुम बुरा मत मान जाना, फरवरी,मई, जुलाई ये चार बेटियां हैं और मार्च, अप्रेल,जून, अगस्त, अक्तूबर, नवंबर और दिसंबर है। दिसम्बर का मिजाज भी अपनी बहन जनवरी जैसा ही है, थोड़ा बच के रहना बेटा। बाकी तो सब ठीक-ठाक है सब को मेरी और से भी सब को नई "मां" यानी नई साल की ढ़ेर सारी शुभकामनाएं देना। भगवान आप की मनोकामना पूर्ण करे। "एक बूढ़ी औरत..............."
"एक बूढ़ी औरत..............."